केदारनाथ मंदिर का नाम दोस्तों आपने अवश्य सुना होगा। केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। केदारनाथ का इतिहास…
केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बना हुआ है। लेकिन केदारनाथ धाम और मंदिर से जुड़ी कई कथाएं वर्णन है। उनमें से 6 ऐसे रहस्य जो भगवान केदारनाथ के मंदिर से जुड़े हुए हैं आइए जानते हैं इन 6 Rahasya के बारे में.……
केदारनाथ धाम की सच्ची कहानी – केदारनाथ मंदिर रहस्य
1. पहला रहस्य: केदारनाथ की उत्पत्ति कैसे हुई?
केदारनाथ का मौजूदा मंदिर के पीछे सर्वप्रथम मंदिर पांडवों ने बनाया था, वह मंदिर कई वर्षों के वक्त के थपेड़ों से मार के चलते पांडवों द्वारा बनाया गया मंदिर विलुप्त हो गया। आदिशंकराचार्य ने इस मंदिर का निर्माण करवाया, आदिशंकराचार्य 508 ईसा पूर्व जन्मे और 476 ईसा पूर्व देहत्याग गए। केदारनाथ मंदिर के पीछे इनकी समाधि है। इसका अपेक्षाकृत गर्भगृह प्राचीन है, लगभग जिसे 80विं शताब्दी माना जाता है। पहले 10 वीं सदी में मालवा के राजा भोज द्वारा और फिर 12 वीं सदी मैं मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।
2. दूसरा रहस्य:
केदारेश्वर मंदिर का पत्थर कटवा और भूरे रंग के विशाल और मजबूत शीलाखंडो को जोड़कर अद्भुत बनाया गया है। इस मंदिर की दीवार 187 फुट लंबी और 80 फुट चौड़ी मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी है, 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़े 85 फुट ऊंचे है।
लेकिन इसमें आश्चर्य की बात यह है कि भगवान केदारेश्वर मंदिर की इतनी ऊंचाई पर भारी पत्थरों को कैसे लाकर वह तराशकर कैसे इस मंदिर को अद्भुत शक्ल दी गई। खासकर आश्चर्य की बात यह है कि विशालकाय छत कैसे खंभों पर रखी गई? और इन पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल कैसे किया गया।

केदारनाथ मंदिर रहस्य
3. तीसरा रहस्य:
केदारनाथ धाम मैं एक तरफ करीब 21 हजार 600 फीट ऊंचा खर्चकुंड और दूसरी तरफ 22 हजार फुट ऊंचा केदार और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड का पहाड़। ऐसा भी नहीं है कि तीन पहाड़ ऊंचे है बल्कि पांच नदियों का संगम भी है। यहां पांचों नदियों का नाम मधुगंगा, सरस्वती, मंदाकिनी, स्वर्ण गौरी, क्षीरगंगा इन नदियों में से अलकनंदा और इसकी सहायक नदी मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इस नदी के किनारे केदारेश्वर धाम है, और यहां पर सर्दियों में भारी बारिश और जबरदस्त बर्फ बारी रहती है।
4. चौथा रहस्य: केदारनाथ में क्या हुआ?
केदारनाथ में 16 जून 2013 में प्रकृति ने ऐसा कहर बरपाया था कि इतना तेज जलप्रलय आया की बड़ी-बड़ी मजबूत इमारतें ताश के पत्तों की तरह पानी में बहकर चले गए। लेकिन भगवान केदारेश्वर के मंदिर का कुछ नहीं बिगड़ा, दोस्तों आश्चर्य तो तब हुआ। जब पीछे की पहाड़ी से पानी के बहाव में लुढ़कते हुए विशालकाय चट्टाने आई और अचानक वह चट्टाने मंदिर के पीछे आकर रुक गई। उस चट्टानों का मंदिर के पीछे इकट्ठा होना इसके साथ साथ बाढ़ का जल प्रभाव दो भागों में विभाजित हो गया। जिससे मंदिर ज्यादा सुरक्षित हो गया, केदारनाथ में इस जल प्रलय में 10 हजार लोगों की मौत हो गई थी।

5. पांचवा रहस्य:
पुराने समय की भविष्यवाणी और पुराणों के अनुसार इस समूचे क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, तो बद्रीनाथ जाने का मार्ग पूरी तरह से बंद हो जाएगा और भक्तगण भगवान बद्रीनाथ का दर्शन नहीं कर पाएंगे। वेद पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ का धाम और केदार नाथ का धाम लुप्त हो जाएंगे। और वर्षों बाद भविष्यवाणी में भविष्य बद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।
6. छठा रहस्य: केदारनाथ कब बंद होते हैं?
दोस्तों दीपावली के महापर्व के दूसरे दिन उस दिन शीत ऋतु आरंभ होती है, उस दिन भगवान केदारनाथ के मंदिर का द्वार बंद कर दिया जाता है। उस दिन से लेकर 6 महीने तक मंदिर के अंदर दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को छह माह तक पहाड़ के नीचे उखीमठ में ले जाते हैं। 6 महीनों के बाद मई माह मैं भगवान केदारनाथ मंदिर का कपाट खुलता है, तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। इन 6 महीनों में मंदिर और उसके आसपास में कोई नहीं रहता है। लेकिन दोस्तों आश्चर्य की बात यह है कि भगवान केदारनाथ का 6 महीने तक दीपक जलता रहता है और निरंतर पूजा भी होती रहती है। और दोस्तों 6 महीने बाद मंदिर का कपाट खुलने के बाद भी एक आश्चर्य की बात है की वैसे की वैसी साफ-सफाई मिलती है मंदिर में जैसे पहले छोड़ कर गए थे।
तो दोस्तों अब जानिए कि 400 साल तक कैसे बर्फ में दबा रहा भगवान केदारनाथ का मंदिर और जब बर्फ से बाहर निकला तो पूर्ण सुरक्षित कैसे था। उत्तराखंड के देहरादून वाडिया इंस्टीट्यूट के हिमालयन जियोलॉजिकल वैज्ञानिक विजय जोशी के अनुसार 13 वीं सदी से 17 वी शताब्दी तक यानी 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था। जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था। उसमें भगवान केदारेश्वर मंदिर क्षेत्र में था। वैज्ञानिकों के अनुसार आज इस मंदिर की दीवारें और पत्थरों पर कई सालों तक बर्फ में दबे रहने के कारण आज भी वह निशान देखने को मिलते हैं।
दरअसल दोस्तों भगवान केदारनाथ का एक हिमालय में ऐसा इलाका है, जोकि चोराबरी ग्लेशियर का एक हिस्सा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियरों के लगातार पिघलते रहना और चट्टानों को खिसकते रहना आगे आने वाले समय में जलप्रलय या कोई अन्य प्राकृतिक आपदाएं जारी रहेगी।
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