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कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है, अद्भुत रहस्य

क्या आपको पता है की कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है

कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण जो की विष्णु के आठवे अवतार थे उनका जनमोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद्गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में जन्म लिया। इसलिये भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरा पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जाता है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का भी आयोजन होता है।

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कृष्ण जन्माष्टमी पर भक्त भव्य चांदनी चौक, दिल्ली (भारत) की खरीदारी सड़कों पर कृष्णा झूला, श्री लड्डू गोपाल के लिए कपड़े और अपने प्रिय भगवान कृष्ण जी की प्रतिमा खरीदते हैं। सभी मंदिरों को खूबसूरती से सजाया जाता है और भक्त आधी रात तक इंतजार करते हैं ताकि वे देख सकें कि उनके द्वारा बनाई गई खूबसूरत खरीद के साथ उनके बाल गोपाल कैसे दिखते हैं।

संसार के पालनकर्ता भगवान श्री विष्णु है। संसार में कई धर्मों के स्थापना और अधर्म के नाश के लिए भगवान विष्णु जी ने कई रूप में अवतार लिए हैं। इनमें से कुछ अंशावतार थे तो कुछ पूर्णावतार के रूप में हुए हैं। द्वापर युग में भगवान श्री विष्णु जी ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार आठवां लिया है। आइए दोस्तों जानते हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है।

श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में जन्म लिया। इसलिये भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं।

लोक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म से लेकर है कि द्वापर युग मैं भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करते थे। उसके आत्तायी पुत्र कंस ने उसे राज गद्दी से उतार दिया और स्वयं कंस मथुरा नगरी का राजा बन बैठा। और राजा कंस की एक बहन देवकी थी। जिसका विवाह वासुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। एक समय राजा कौन अपनी बहन देवकी को ससुराल पहुंचाने जा रहे थे। रास्ते मैं यह कैसी आकाशवाणी हुई- ‘हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ससुराल ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इस देवकी के गर्भ मैं उत्पन्न बालक भगवान विष्णु का आठवां अवतार है जो बालक तेरा वध करेगा। यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उतदय हुआ। तभी उनकी बहन देवकी ने कंस को विनयपूर्वक से कहा- मेरे गर्भ में जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ मिलेगा तुझे तभी कंस देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। और वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।

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जब देवकी के गर्भ से 7 बच्चे हुए उन्हें सातों को कंस ने एक-एक करके मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कंस ने कारागृह पर कड़े पहेरे बिठा दिया। तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।’उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- ‘अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।’ यह है कृष्ण जन्म की कथा।

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